मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मैं तेरी.....तू मेरा......







हम पे हर बात तेरी अब बेअसर होती है...
तेरे कूचे में  फिर भी  उम्र बसर  होती है....!!

तेरी महफ़िल में यूँ तो आ ही गए हैं हम भी...
अब यहीं होती सुबह.....शाम यहीं होती है.....!!

तेरे नज़दीक रहूँ या न रहूँ मैं....फिर भी...
तेरी हर बात पे अब नज़र मेरी होती है....!!

मेरे कुछ कहने से उनको थी शिकायत कितनी...
मेरी ख़ामोशी भी अब उनको सजा  होती  है....!!

हमारे नाम से भी उनको उज़्र होता था...
हमारे ज़िक्र से अब उनकी सुबह होती है....!!

हमने माना कि उन्हें प्यार नहीं है हमसे...
किस लिए फिर भी उन्हें फिक्र मेरी होती है....!!