सोमवार, 19 अगस्त 2013

हर रिश्ता.....एक कोशिश.....




तन की आवश्यकता हो तो...
कहीं भी पूरी की जा सकती है...
किन्तु इंसान एक ऐसा प्राणी है जो...
भावनात्मक तौर पर जुड़ना चाहता है...
वर्ना उसका हर रिश्ता समझौता है..! 
नज़दीक रह कर भी.. 
आदमी आदमी को नहीं पहचान पाता !
हाथ मिलते हैं....
शरीर भी मिलते हैं....!
पर दिल.....???
दिल नहीं मिलते !                                               
अगर फूल में रंगत हो, 
कोमलता हो,ताज़गी हो 
लेकिन खुशबू न हो...
तो वो फूल कैसा....????
संबंधों में मधुरता...
एक-दुसरे के लिए सम्मान ज़रूरी है 
तभी सम्बन्ध फलते फूलते हैं...
और ताउम्र चलते भी हैं...! 
झूठ, दंभ, दिखावा, बड़बोलापन 
और अपशब्दता... 
किसी भी सम्बन्ध को 
बेवक्त और बेमौत मारने के लिए काफी है....!!


***पूनम***




10 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों को परिभाषित करती भावयुक्त सुंदर रचना !!

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  2. रिश्तों को परिभाषित करती भावयुक्त सुंदर रचना !!

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  3. सही कहा है, एक दूसरे का सम्मान करना ही वास्तव में गहरा प्रेम है..सम्मान बाहरी रूप का नहीं होता उन मूल्यों का होता है जिन्हें कोई अपना आदर्श बनता है

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  4. सच कहा अहि ... रिश्ते ऐसे नहीं बनते ... मन से मन का संबंध होना, भावनात्मक लगाव होना जरूरी है ...

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  5. कल 22/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  6. बहुत प्यारी और मन को छूती हुई कविता ..

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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